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द हरमिट

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अपराईट भविष्य कथन का महत्व



आंतरिक शक्ति, विवेक, वापसी, सावधानी, सतर्कता, आत्म-खोज, आत्मनिरीक्षण, अकेले रहना, आंतरिक मार्गदर्शन

महर्षी भृगु ने विश्व को भविष्य कथन के मार्ग सिखाए। महर्षी भृगु ही हैं जिन्होने ताडपत्र लिखे। जिसे आज टैरो कार्ड के नाम से जाना जाता है। यह कार्ड विश्व को प्रकाश देनेवाला आंतरिक मार्गदर्शन है। यह कार्ड एक 'यस' सकारात्मक कार्ड है।

अपने अंदर की आंतरिक शक्ति को पहचानिए।आप एक गुरु के जैसे विवेक, आत्म-खोज, आत्मनिरीक्षण से भरपूर है। आपके पास विवेक से सोचने कि क्षमता है। अपने गलतियों का आत्मनिरीक्षण करके अपने आप को सुधारने का मौका आप देते हैं। ये बडी अच्छी बात है।

हर एक बिगडे काम में वापसी कैसे की जाएँ यह कोई आपसे सीखे। हर एक काम को आप सावधानी से अंजाम देते हैं।छोटी से छोटी बात की भी सतर्कता आप रखते हैं।आप अपने आप में सोचनेवाले व्यक्ति होने के कारण आप अकेले रहना ज्यादा पसंद करते है। कभी भीं भीड़ और शोरगुल आपको पसंद नहीं आता।

रिवर्स भविष्य कथन



जल्दबाजी, उतावलापन, अपरिपक्वता, नासमझी, अव्यावहारिकता, अलगाव, अकेलापन, वापसी

किसी भी काम को खत्म होने से पहले जल्दबाजी, उतावलापन नहीं कीजिए। बाजी पलट भी सकती है। किसी भी जगह अपरिपक्वता, नासमझी से काम लेना ही नहीं है। आपकी हल्की सी भूल का खामियाजा बडा भुगतना पड सकता है।

आप समझदार है। आपसे अव्यावहारिकता की उम्मीद नहीं है। अलगाव, अकेलापन आपको सताएगा।सताएगा। चाहे दुनिया आपके सामने दीवार बनके आप को कामयाब होने से रोक दे। आपको वापसी करनी है। जीतना है जीतना ही होगा।

युरोपिय टैरो कार्ड अभ्यास वस्तु



यूरोपीय कार्ड में एक उम्र दराज व्यक्ति को हाथ में दीया पकड़े हुए दिखाया गया है। यहाँ संदेश स्पष्ट है। एक सिनियर सिटिजन मार्गदर्शी की भूमिका अदा कर रहा है। वह 'कोई भी' हो सकता है।

प्राचीन भारतीय टैरो कार्ड अभ्यास वस्तु


प्राचीन भारतीय टैरो कार्ड में 'द हर्मिट' में "भृगु ऋषि" नामक एक महात्मा है।

वह ज्योतिष शास्त्र के निर्माता हैं। उन्होंने हजारों साल पहले टैरो कार्ड का आविष्कार किया है। उन्होंने अपने पुत्र शुक्राचार्य के साथ ज्योतिष के कई पहलुओं पर चर्चा की। बाद में, इसे "भृगु संहिता" के रूप में प्रकाशित किया गया था।

चर्चा करते हुए, महर्षि भृगु ने कुछ चित्र खींचे और मानव जीवन के साथ उनकी समानता को समझाया। बाद में इसका कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया गया। यह लिपि ताड़पत्र (ताड़ के पेड़ के पत्ते) पर लिखी गई थी, दक्षिण भारत में यह 'नाडी शास्त्र' के नाम से प्रसिद्ध है।

यूरोपीय लोग ताड़पत्र का उच्चारण टैरो के रूप में करते हैं, -ताड- टाड- टैर- टैरो.. 'टैरो' के रूप में उच्चारित किया गया।

भृगु ऋषी

वेद पुराणादि के प्रमाणिक पात्र महर्षि भृगु का जन्म 6 हजार ईसा पूर्व ब्रह्मलोक-सुषा नगर में हुआ था। ये आज सनातनी धर्मग्रंथों में वर्णित ब्रम्हा के पुत्र थे | आपके बड़े भाई का नाम अंगिरा ऋषि था। जिनके पुत्र बृहस्पतिजी हुए जो देवगणों के पुरोहित-देवगुरू के रूप में जाने जाते हैं।

देवी भागवत के चतुर्थ स्कंध विष्णु पुराण, अग्नि पुराण, श्रीमद्भागवत में खण्डों में बिखरे वर्णनों के अनुसार महर्षि भृगु प्रचेता-ब्रह्मा के पुत्र हैं, इनका विवाह दक्ष प्रजापति की पुत्री ख्याति से हुआ था। जिनसे इनके दो पुत्र काव्य-शुक्र और त्वष्टा तथा एक पुत्री ‘श्री’ लक्ष्मी का जन्म हुआ। इनकी पुत्री ‘श्री’ का विवाह श्री हरि विष्णु से हुआ। दैत्यों के साथ हो रहे देवासुर संग्राम में महर्षि भृगु की पत्नी ख्याति जो योगशक्ति सम्पन्न तेजस्वी महिला थी। दैत्यों की सेना के मृतक सैनिकों को वह अपने योगबल से जीवित कर देती थी। जिससे नाराज होकर श्रीहरि विष्णु ने शुक्राचार्य की माता, भृगुजी की पत्नी ख्याति का सिर अपने सुदर्शन चक्र से काट दिया। अपनी पत्नी की हत्या होने की जानकारी होने पर महर्षि भृगु भगवान विष्णु को शाप देते हैं कि तुम्हें स्त्री के पेट से बार-बार जन्म लेना पड़ेगा। उसके बाद महर्षि अपनी पत्नी ख्याति को अपने योगबल से जीवित कर गंगा तट पर आ जाते हैं, तमसा नदी की सृष्टि करते हैं।

पद्म पुराण के उपसंहार खण्ड की कथा के अनुसार त्रिदेवों की परीक्षा लेने के क्रम में महर्षि भृगु सबसे पहले भगवान शंकर के कैलाश पहुचे उस समय भगवान शंकर अपनी पत्नी सती के साथ विहार कर रहे थे। नन्दी आदि रूद्रगणों ने महर्षि को प्रवेश द्वार पर ही रोक दिया। इनके द्वारा भगवान शंकर से मिलने की हठ करने पर रूद्रगणों ने महर्षि को अपमानित भी कर दिया। कुपित महर्षि भृगु ने भगवान शंकर को तमोगुणी घोषित करते हुए लिंग रूप में पूजित होने का शाप दिया।यहाँ से महर्षि भृगु ब्रह्मलोक (सुषानगर, पर्शिया ईरान) ब्रह्माजी के पास पहुँचे। ब्रह्माजी अपने दरबार में विराज रहे थे। सभी देवगण उनके समक्ष बैठे हुए थे। भृगु जी को ब्रह्माजी ने बैठने तक को नहीं कहे। तब महर्षि भृगु ने ब्रह्माजी को रजोगुणी घोषित करते हुए अपूज्य (जिसकी पूजा ही नहीं होगी) होने का शाप दिया। कैलाश और ब्रह्मलोक में मिले अपमान-तिरस्कार से क्षुभित महर्षि विष्णुलोक चल दिये।

भगवान श्रीहरि विष्णु पत्नी लक्ष्मी-श्री के साथ शयन कर रहे थे। महर्षि भृगुजी को लगा कि हमें आता देख विष्णु सोने का नाटक कर रहे हैं। उन्होंने अपने दाहिने पैर का आघात श्री विष्णु जी की छाती पर कर दिया। महर्षि के इस अशिष्ट आचरण पर विष्णुप्रिया लक्ष्मी जो श्रीहरि के चरण दबा रही थी, कुपित हो उठी। लेकिन श्रीविष्णु जी ने महर्षि का पैर पकड़ लिया और कहा भगवन् ! मेरे कठोर वक्ष से आपके कोमल चरण में चोट तो नहीं लगी। महर्षि भृगु लज्जित भी हुए और प्रसन्न भी, उन्होंने श्रीहरि विष्णु को त्रिदेवों में श्रेष्ठ सतोगुणी घोषित कर दिया।

किंतु श्रीविष्णु के वक्षस्थल पर प्रहार किया, तो पास बैठी विष्णुपत्नी (माँ महालक्ष्मी) ने भृगु जी को श्राप दे दिया कि अब वे किसी ब्राह्मण के घर निवास नहीं करेंगी और सरस्वती पुत्र ब्राह्मण सदैव दरिद्र ही रहेंगे। अनुश्रुति है कि उस समय महर्षि भृगृ की रचना ‘ज्योतिष संहिता’ अपनी पूर्णता के अंतिम चरण पर थी, इसलिए उन्होंने कह दिया.. ‘देवी लक्ष्मी, आपके कथन को यह ग्रंथ निरर्थक कर देगा।’ लेकिन महालक्ष्मी ने भृगुजी को सचेत किया कि इसके फलादेश की सत्यता आधी रह जाएगी। लक्ष्मी के इन वचनों ने महर्षि भृगु के अहंकार को झकझोर दिया। वे लक्ष्मी को श्राप दें, इससे पहले श्रीविष्णु ने महर्षि भृगु से कहा, ‘महर्षि आप शान्त हों! आप एक नए संहिता ग्रंथ की रचना करें। इस कार्य के लिए मैं आपको दिव्य दृष्टि देता हूं।’ तब तक माँ लक्ष्मी का भी क्रोध शान्त हो गया था और उन्हें यह भी ज्ञात हो गया कि महर्षि ने पद प्रहार अपमान की दृष्टि से नहीं अपितु परीक्षा के लिए ही किया था।

श्रीविष्णु के कथनानुसार, महर्षि भृगु ने जिस संहिता ग्रंथ की रचना की वही जगत में ‘भृगुसंहिता’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। जातक के भूत, भविष्य और वर्तमान की संपूर्ण जानकारी देने वाला यह ग्रंथ भृगु और उनके पुत्र शुक्र के बीच हुए प्रश्नोत्तर के रूप में है।





प्राचीन भारतीय टैरो कार्ड

द फूल

द मैजिशियन

द हाई प्रिस्टेस

द एम्प्रेस

द एम्परर

द हेरोफंट

द लवर्स

द चैरीओट

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